थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर तनाव गहराया:- आपको बतादे रूस-यूक्रेन और इज़राइल-पड़ोसी देशों के बीच जारी संघर्षों के बीच अब दक्षिण-पूर्व एशिया से भी चिंता की खबरें आने लगी हैं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद एक बार फिर उग्र रूप ले चुका है। हालिया झड़पों में दोनों ओर से हताहतों की खबरें हैं और स्थिति दिन-ब-दिन विस्फोटक होती जा रही है। कंबोडिया की ओर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने की मांग के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह मुद्दा गर्मा गया है

आखिर टकराव की जड़ क्या है?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा रेखा को लेकर मतभेद कोई नया मुद्दा नहीं है। 1907 में जब कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश था, तब सियाम (वर्तमान थाईलैंड) और कंबोडिया के बीच 817 किलोमीटर लंबी सीमा तय की गई थी। हालांकि समय के साथ विशेषकर कुछ ऐतिहासिक स्थलों और मंदिरों को लेकर दोनों देशों में विवाद गहराता चला गया।
अंतरराष्ट्रीय अदालत और प्रीह विहार मंदिर विवाद
1962 में यह विवाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) पहुंचा, जहां कोर्ट ने 11वीं सदी के प्रीह विहार मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा माना। थाईलैंड ने इस फैसले को सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया, लेकिन आसपास के इलाकों पर दावा बनाए रखा। यह मुद्दा 2008 में फिर से भड़क गया, जब कंबोडिया ने इस मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल कराने का प्रयास किया। थाईलैंड ने इसका विरोध किया, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई और कई लोगों की जान गई।
2013 में ICJ ने एक बार फिर कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन थाईलैंड ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को मानने से इनकार कर दिया। कुछ वर्षों तक यह विवाद शांत रहा, लेकिन अब एक बार फिर यह लपटों में बदल चुका है।
मौजूदा संघर्ष की वजह: ता मोअन थोम मंदिर
गुरुवार को सीमा क्षेत्र में स्थित 12वीं सदी का प्रसात ता मोअन थोम मंदिर दोनों सेनाओं के बीच टकराव का केंद्र बन गया। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और दांग्रेक पर्वत श्रृंखला में स्थित है। दोनों देश इसे अपने क्षेत्र में बताते हैं। सूत्रों के अनुसार, सुबह 8:20 बजे मंदिर से महज 200 मीटर दूर पहली गोलीबारी हुई। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे पर पहले फायरिंग का आरोप लगाया।
कंबोडिया के मुताबिक, थाईलैंड की ओर से उसके क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की गई, जबकि थाई सेना ने कहा कि उन्हें पहले ड्रोन की आवाज सुनाई दी और उसके बाद कंबोडियाई सैनिक दिखाई दिए।
दोनों देशों का दावा
थाईलैंड का आरोप
थाई सेना का कहना है कि कंबोडिया की ओर से सुरिन प्रांत में बीएम-21 रॉकेट दागे गए, जिसमें कम से कम 11 नागरिकों की मौत हुई है। इसके बाद लगभग 40,000 लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से निकाला गया है। थाई वायुसेना ने एफ-16 लड़ाकू विमानों को तैनात किया और कुछ सैन्य ठिकानों को निशाना भी बनाया।
कंबोडिया का दावा
कंबोडिया ने आरोप लगाया कि थाई सेना ने उसके प्रांतों में गोलीबारी की और “वाट केओ सिक्खा किरिसवारा” क्षेत्र में बम बरसाए। कंबोडिया की सेना का कहना है कि उसने अपने इलाके की सुरक्षा के लिए सैनिकों को तैनात किया था।
क्या यह तनाव युद्ध का रूप ले सकता है?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों देशों के बीच जारी यह संघर्ष पूर्ण युद्ध में बदलने की संभावना कम है। विशेषज्ञों के अनुसार, अतीत में भी कई बार ऐसी झड़पें हुई हैं जो कुछ दिनों में शांत हो गईं। हालांकि, इस बार कुछ विशेष राजनीतिक कारणों से मामला गंभीर होता नजर आ रहा है।
थाईलैंड में बढ़ते राष्ट्रवादी माहौल और हालिया राजनीतिक घटनाक्रम ने सरकार पर दबाव बढ़ाया है। प्रधानमंत्री पेइतोंग्तर्न शिनावात्रा को हाल ही में एक लीक फोन कॉल के चलते निलंबित किया गया, जिसमें वे कंबोडियाई नेता हुन सेन को “अंकल” कहकर थाई सेना की आलोचना करते सुनाई दिए। यह प्रकरण थाईलैंड की राजनीति में भूचाल ले आया।
दूसरी तरफ, कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन के बेटे हुआ मानेत सत्ता में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हुन सेन इस विवाद को अपने बेटे के नेतृत्व को स्थापित करने के अवसर के रूप में भी देख रहे हैं। यह रणनीति उन्हें अपने देश में लोकप्रियता बढ़ाने में मदद कर सकती है।
कूटनीतिक और सामरिक स्थिति
दोनों देशों ने एक-दूसरे पर आर्थिक और सांस्कृतिक बहिष्कार लागू करना शुरू कर दिया है। कंबोडिया ने थाई फिल्मों, टीवी शोज और उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया है, साथ ही ऊर्जा और इंटरनेट सेवाओं में भी थाईलैंड का बहिष्कार शुरू कर दिया है।
थाईलैंड की ओर से सीमा पर भारी सैन्य तैनाती और एफ-16 की तैनाती इस बात का संकेत है कि वह किसी भी स्थिति के लिए तैयार है। वहीं, कंबोडिया की ओर से UNSC की बैठक बुलाने की मांग बताती है कि वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश कर रहा है।
निष्कर्ष
भले ही थाईलैंड और कंबोडिया के बीच युद्ध की संभावना सीमित हो, लेकिन फिलहाल तनाव कम होता नहीं दिख रहा। दोनों देशों को संयम दिखाते हुए कूटनीतिक समाधान तलाशना होगा, वरना यह ऐतिहासिक विवाद नए सिरे से दक्षिण-पूर्व एशिया की शांति के लिए खतरा बन सकता है।