भारत का बड़ा कदम:- केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर 1856 मेगावाट क्षमता वाली स्वालकोट हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के निर्माण के लिए ई-टेंडर जारी कर दिया है। यह कदम पाकिस्तान को सीधे तौर पर चुनौती देने वाला माना जा रहा है, क्योंकि वर्षों से इस परियोजना पर पड़ोसी देश आपत्तियां दर्ज करता रहा है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना का निर्माण सिधू गांव में किया जाएगा, जो जम्मू से करीब 120 और श्रीनगर से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। परियोजना के लिए राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (NHPC) ने निविदा जारी कर दी है, जिसकी अंतिम तिथि 10 सितंबर 2025 तय की गई है।

सिंधु जल संधि के बाद पहला बड़ा फैसला

यह परियोजना उस समय लाई जा रही है जब भारत सरकार ने हाल ही में सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐलान किया था। यह संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित हुई थी, जिसके तहत भारत ने पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब—का जल पाकिस्तान को देने पर सहमति जताई थी। लेकिन अब भारत ने इन संसाधनों के अपने अधिकतम उपयोग की दिशा में निर्णायक कदम उठाना शुरू कर दिया है।

पाकिस्तान की पुरानी आपत्तियों को दरकिनार कर भारत का ‘जल-अधिकार’ पर जोर

पाकिस्तान की बार-बार की आपत्तियों के चलते यह परियोजना वर्षों तक रुकी रही। लेकिन हाल के दिनों में भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह अब अपनी नदियों के जल संसाधनों पर पूर्ण अधिकार सुनिश्चित करना चाहता है।

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने हाल ही में संसद में बोलते हुए कहा कि सिंधु जल संधि ऐतिहासिक रूप से एकतरफा रही है और भारत ने अपनी जमीन से निकलने वाले जल को बिना उचित अधिकार के पाकिस्तान को सौंपा है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के उस बयान को भी उद्धृत किया, जिसमें उन्होंने संधि के पक्ष में दलील दी थी लेकिन भारत के किसानों के हितों का उल्लेख नहीं किया था।

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पीएम मोदी के फैसले को बताया ‘नेहरू की गलती का सुधार’

केंद्र सरकार का मानना है कि अनुच्छेद 370 को हटाना और सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करना—दोनों ही कदम राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए जरूरी थे। भाजपा का कहना है कि इससे पहले की सरकारें पाकिस्तान को अनुचित रियायतें देती रहीं, जबकि अब समय आ गया है कि भारत अपने जल संसाधनों का रणनीतिक और व्यावसायिक उपयोग करे।