देहरादून कमजोर चट्टानों का भूस्खलन बना आफत:- एक बार फिर देहरादून में बड़ी घटना घटी है आपको बतादे सहस्रधारा और मालदेवता क्षेत्र लगातार भूस्खलन की चपेट में आ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां की कमजोर चट्टानें, तीव्र ढलानें और अंधाधुंध विकास इस क्षेत्र को आपदाओं की प्रयोगशाला बना रहे हैं।

हाल ही में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, सीएसआईआर-एनजीआरआई और सिक्किम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को लेकर एक संयुक्त शोधपत्र जारी किया है, जिसमें कई अहम चेतावनियां दी गई हैं।
2022 की तबाही से सबक नहीं
20 अगस्त 2022 को मालदेवता क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही हुई थी। उस समय वाडिया इंस्टीट्यूट के तत्कालीन निदेशक कलाचंद सैन, वैज्ञानिक मनीष मेहता, विनीत कुमार और सिक्किम विश्वविद्यालय के विक्रम गुप्ता ने इस आपदा पर विस्तृत शोध किया था। यह शोध मार्च 2023 में एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ।
वैज्ञानिकों ने साफ चेताया था कि मालदेवता भूगर्भीय दृष्टि से अति संवेदनशील इलाका है। यह क्षेत्र मुख्य सीमा भ्रंश (Main Boundary Thrust) पर स्थित है, जो एक सक्रिय फॉल्ट लाइन है।
कमजोर चट्टानें और जलवायु परिवर्तन बना रहे आपदा का खतरा
शोध में बताया गया कि मालदेवता और सहस्रधारा क्षेत्र की चट्टानें बेहद कमजोर और भुरभुरी हैं। लगातार तेज बारिश और बादल फटने जैसी घटनाएं इन ढलानों को अस्थिर कर देती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है।
वैज्ञानिकों ने चेताया कि जलवायु परिवर्तन, अस्थिर भू-भाग और अवैज्ञानिक विकास तीनों मिलकर हिमालयी क्षेत्रों को आपदा-प्रवण बना रहे हैं।
नदी का रास्ता बदलने से आई थी तबाही
2020 और 2021 में भारी भूस्खलन के कारण बाल्दी नदी में मलबा जमा हो गया था। इससे नदी का प्राकृतिक बहाव बदल गया। 2022 में बादल फटने के बाद यही मलबा पानी के साथ नीचे बहा और हजारों टन मलबे ने गांवों और खेतों को तबाह कर दिया।
अंधाधुंध विकास बढ़ा रहा खतरा
वैज्ञानिकों ने कहा कि नदियों के किनारे अवैध और अनियोजित भवनों का निर्माण सबसे बड़ी समस्या है। कई मकान तो सीधे नदी के किनारे या बीच में बनाए गए हैं। इससे न सिर्फ नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है, बल्कि बाढ़ और भूस्खलन की मार और भी बढ़ जाती है।
समाधान: सही योजना और जागरूकता ही बचा सकती है जान
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इनके असर को कम किया जा सकता है। इसके लिए—
- नदी किनारे निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगे, खासकर फ्लड टेरेस पर।
- हर संवेदनशील इलाके में स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS) लगाए जाएं ताकि समय पर चेतावनी मिल सके।
- किसी भी विकास परियोजना से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अनिवार्य किया जाए।
- स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाए कि वे नदी किनारे मकान न बनाएं।
यह भी पड़े:- नवरात्र से पहले बड़ी राहत: कल से फिर शुरू होगी वैष्णो देवी यात्रा, मौसम बनेगी निर्णायक
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया, तो सहस्रधारा-मालदेवता जैसे क्षेत्र भविष्य में और बड़ी आपदाओं की चपेट में आ सकते हैं।