बिहार जाने वाली ट्रेनों में भारी भीड़:- त्योहारों का मौसम अपने चरम पर है — दिवाली, भाईदूज और छठ जैसे त्योहार देशभर में उत्साह का माहौल लेकर आते हैं। परंतु इस खुशी के बीच, बिहार जाने वाली ट्रेनों में मची भीषण भीड़ एक अलग ही कहानी बयां कर रही है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए केंद्र की एनडीए सरकार पर तीखा हमला बोला है।

राहुल गांधी ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर पोस्ट करते हुए लिखा,
“त्योहारों का महीना है — दिवाली, भाईदूज, छठ। बिहार में इन त्योहारों का मतलब सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि घर लौटने की लालसा है — मिट्टी की खुशबू, परिवार का स्नेह, गांव का अपनापन। लेकिन यह लालसा अब एक संघर्ष बन चुकी है।”
राहुल ने कहा कि बिहार जाने वाली ट्रेनों की स्थिति अत्यंत खराब है — “ट्रेनें ठसाठस भरी हैं, टिकट मिलना लगभग असंभव हो गया है, और यात्रा अमानवीय बन चुकी है। कई ट्रेनों में क्षमता से दोगुने तक यात्री सवार हैं, लोग दरवाजों और छतों तक लटके हुए सफर कर रहे हैं।”
राहुल गांधी का आरोप — ‘फेल हो चुकी है डबल इंजन सरकार’
राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि एनडीए के दावे महज खोखले वादे बनकर रह गए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि “कहां हैं वे 12,000 स्पेशल ट्रेनें जिनका सरकार दावा कर रही है? अगर व्यवस्था इतनी मजबूत है तो हर साल त्योहारों पर ऐसी दुर्दशा क्यों देखने को मिलती है?”
उन्होंने कहा कि “बिहार और पूर्वी भारत के लाखों लोग रोज़गार की तलाश में दूर-दराज़ शहरों में मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। अगर राज्य में सम्मानजनक जीवन और पर्याप्त रोजगार के अवसर होते, तो लोगों को हर साल ऐसे अमानवीय हालात में घर लौटने को मजबूर नहीं होना पड़ता।”
राहुल ने इस स्थिति को केंद्र सरकार की नीतियों का आईना बताते हुए कहा कि “ये बेबस यात्री एनडीए की छल और दिखावे की नीतियों का जीता-जागता सबूत हैं। सुरक्षित और सम्मानजनक यात्रा कोई एहसान नहीं — यह हर नागरिक का अधिकार है।
सरकार का दावा — “व्यवस्था पर पूरी नजर है”
दूसरी ओर, रेलवे प्रशासन का कहना है कि यात्रियों की सुविधा के लिए विशेष कदम उठाए गए हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का दौरा किया और स्वयं ट्रेनों में चढ़कर सफाई, खानपान, टिकट व्यवस्था और सुरक्षा की स्थिति का जायजा लिया।
रेल मंत्री ने कहा, “त्योहारों के दौरान यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी होती है। हमारी कोशिश है कि हर यात्री को सुरक्षित और समय पर यात्रा का अनुभव मिले। इसी उद्देश्य से देशभर में 12,000 स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। साथ ही प्रमुख स्टेशनों पर अतिरिक्त स्टाफ, हेल्प डेस्क और टिकट काउंटर की व्यवस्था की गई है।”
उन्होंने बताया कि रेलवे ने इस बार “होल्डिंग एरिया” जैसी व्यवस्था भी लागू की है ताकि यात्रियों की भीड़ को नियंत्रित किया जा सके। वैष्णव ने कहा कि “यात्रियों की सुरक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है, और सभी अधिकारी स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।”
जमीनी हकीकत — यात्रियों की परेशानी बरकरार
हालांकि, जमीनी स्तर पर तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जाने वाली अधिकांश ट्रेनों में यात्रियों की संख्या सामान्य क्षमता से कई गुना अधिक है। कई यात्रियों ने शिकायत की है कि टिकटों की उपलब्धता बेहद सीमित है और तत्काल कोटा में भी सीटें कुछ ही सेकंड में खत्म हो जाती हैं।
दिल्ली के आनंद विहार स्टेशन पर मिले एक यात्री, सतीश कुमार, ने बताया — “हर साल यही हाल है। टिकट नहीं मिलती, और जो मिलती है वह बहुत महंगी दर पर एजेंटों से खरीदनी पड़ती है। लोग परिवार के साथ किसी तरह घर पहुंचने की कोशिश करते हैं, लेकिन सफर में भीड़ और असुविधा की कोई सीमा नहीं।”
इसी तरह, सीतामढ़ी की रहने वाली रीता देवी ने कहा, “छठ पूजा के लिए घर जाना हमारी परंपरा है, लेकिन अब यह पूजा एक जंग बन गई है। बच्चों के साथ सफर करना मुश्किल हो गया है, ट्रेन में बैठने की जगह तक नहीं मिलती।
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विश्लेषण — व्यवस्था या लापरवाही?
विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल त्योहारों के दौरान बिहार और पूर्वी भारत के प्रवासी मजदूरों का यह पलायन सरकार और रेलवे दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। पर्याप्त स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था के बावजूद, मांग और आपूर्ति के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।
रेलवे अधोसंरचना में सुधार के बावजूद, यात्रियों की संख्या में तेजी से वृद्धि और सीमित संसाधन इस समस्या को और जटिल बना रहे हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि दीर्घकालिक समाधान के लिए राज्यों में रोजगार सृजन और बेहतर आर्थिक अवसर पैदा करना ही सबसे प्रभावी कदम होगा।
निष्कर्ष
त्योहारों पर घर लौटना हर भारतीय के लिए भावनात्मक जुड़ाव का विषय है — यह केवल यात्रा नहीं, बल्कि जड़ों से पुनः मिलने की भावना है। लेकिन जब यह यात्रा एक संघर्ष में बदल जाती है, तो यह केवल व्यवस्था की कमी नहीं बल्कि नीति और संवेदनशीलता की परीक्षा भी बन जाती है।
राहुल गांधी का यह बयान केवल राजनीतिक प्रहार नहीं, बल्कि उन लाखों प्रवासियों की आवाज़ है जो हर साल “घर लौटने” के सपने को भीड़भाड़ और अव्यवस्था में खोते हुए देखते हैं।
