भारत की आवाज़ खामोश हुई:- भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और भारत की आवाज़” कहे जाने वाले पियूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। विज्ञापन की दुनिया को मानवीय संवेदनाओं और भारतीय भावनाओं से जोड़ने वाले इस रचनात्मक प्रतिभा के निधन से पूरा देश शोक में डूब गया है।

ओगिल्वी इंडिया (Ogilvy India) से लंबे समय तक जुड़े रहे पियूष पांडे ने भारतीय ब्रांड्स को एक नई पहचान दी। उन्होंने ऐसे विज्ञापन बनाए जो सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते थे, बल्कि भावनाओं को जगाते थे — चाहे वह Fevicol का ‘जोड़ न टूटे’ हो या Cadbury Dairy Milk का ‘कुछ खास है जिंदगी में’ वाला ऐड।
विज्ञापन की दुनिया के कहानीकार
पियूष पांडे का जन्म 1955 में जयपुर में हुआ था। भारतीय क्रिकेट टीम में चयन न हो पाने के बाद उन्होंने अपने करियर की दिशा विज्ञापन की ओर मोड़ ली।
उन्होंने अपनी हिंदी समझ, भारतीय संस्कृति से जुड़ाव और लोकभाषा की ताकत को विज्ञापन की भाषा बनाया।
उनका मानना था — “एक अच्छा ऐड वही होता है जिसे देखकर आपकी मां मुस्कुरा दे।”
उनकी सोच ने भारतीय विज्ञापन को पश्चिमी छवि से निकालकर भारतीय भावनाओं और जुबान की जड़ों से जोड़ा।
उपलब्धियाँ और सम्मान
- 2016 में पद्मश्री सम्मान से नवाज़े गए।
- Ogilvy Asia-Pacific के चीफ क्रिएटिव ऑफिसर और बाद में चेयरमैन एमेरिटस बने।
- Fevicol, Cadbury, Asian Paints, Pidilite, SBI, और Incredible India जैसी ऐतिहासिक मुहिमों के जनक रहे।
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उनके बनाए कई विज्ञापन आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। “Fevicol ka mazboot jod”, “Kuch khaas hai zindagi mein”, “Har khushi mein rang laaye Asian Paints” — ये सिर्फ टैगलाइन नहीं, बल्कि भारतीय घरों की यादें बन गईं।
शोक और श्रद्धांजलि
पियूष पांडे के निधन पर अमिताभ बच्चन, आनंद महिंद्रा, प्रहलाद कक्कड़, और कई उद्योग जगत के नेताओं ने गहरा दुख जताया।
आनंद महिंद्रा ने X (Twitter) पर लिखा — “उन्होंने हमें सिखाया कि विज्ञापन सिर्फ मार्केटिंग नहीं, इंसान से जुड़ने की कला है।”
Ogilvy India ने एक भावनात्मक बयान में कहा —
हमने सिर्फ अपने क्रिएटिव हेड को नहीं खोया, हमने एक कहानीकार खो दिया जिसने भारत को उसकी आवाज़ दी।”
अंतिम शब्द
पियूष पांडे का जाना भारतीय विज्ञापन इतिहास का एक युग समाप्त होने जैसा है।
उन्होंने हमें सिखाया कि ब्रांड सिर्फ प्रोडक्ट नहीं होते — वे लोगों की भावनाओं, यादों और मुस्कुराहटों का हिस्सा होते हैं।
उनकी रचनाएँ, उनके शब्द, और उनकी मुस्कान — भारतीय विज्ञापन की आत्मा में हमेशा गूंजती रहेंगी।
