ड्राइविंग लाइसेंस रद्द नहीं कर सकती पुलिस:- कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रैफिक पुलिस के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रैफिक पुलिस ड्राइविंग लाइसेंस जब्त कर सकती है, लेकिन उसे रद्द या निलंबित करने का अधिकार केवल लाइसेंस जारी करने वाली अथॉरिटी के पास है। यह फैसला कानून के सही पालन और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है

कोलकाता, 29 जुलाई:
कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रैफिक नियमों के क्रियान्वयन में पुलिस की भूमिका और सीमाओं को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि ट्रैफिक पुलिस यदि किसी उचित कारण से ड्राइविंग लाइसेंस जब्त करती है, तो वह वैध है, लेकिन उसे रद्द या निलंबित करने का कोई अधिकार पुलिस के पास नहीं है। यह अधिकार केवल लाइसेंसिंग अथॉरिटी को ही प्राप्त है।
यह मामला तब चर्चा में आया जब कोलकाता के एक वकील सुभ्रांग्शु पांडा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वकील ने आरोप लगाया कि उन्हें तेज गति से वाहन चलाने के आरोप में रोका गया, उनका लाइसेंस जब्त कर लिया गया और उनसे मौके पर ही नकद जुर्माना भरने का दबाव डाला गया।
कोर्ट की सख्ती और निर्देश
इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी चटर्जी की पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 206 में ‘इंपाउंड’ शब्द का उल्लेख है, लेकिन इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। ऐसे में इसका सामान्य अर्थ ही मान्य होगा। पुलिस यदि किसी गंभीर उल्लंघन जैसे नशे में गाड़ी चलाना या खतरनाक ड्राइविंग की स्थिति में लाइसेंस जब्त करती है, तो भी उसे अदालत या संबंधित लाइसेंसिंग अथॉरिटी को सौंपना अनिवार्य है।
नहीं वसूल सकती पुलिस मौके पर जुर्माना
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि यदि कोई व्यक्ति आरोपों को अदालत में चुनौती देना चाहता है, तो पुलिस उसे मौके पर जुर्माना भरने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। अदालत ने इस प्रक्रिया को गैर-कानूनी और नागरिक स्वतंत्रता के विरुद्ध बताया।
पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण देने का आदेश
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह महसूस किया कि कई बार पुलिसकर्मी मोटर वाहन अधिनियम की जटिलताओं को ठीक से नहीं समझते और आम जनता को परेशान करते हैं। इस संदर्भ में कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि ट्रैफिक पुलिस को कानून की बारीकियों की बेहतर समझ देने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं।
यह पुलिस स्टेट नहीं, लोकतांत्रिक वेलफेयर स्टेट है
न्यायालय ने कहा कि भारत एक कानून आधारित लोकतंत्र है, न कि पुलिस के निर्देशों पर चलने वाला राज्य। पुलिस अधिकारी यदि यह मानते हैं कि उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का अधिकार है, तो यह गंभीर गलतफहमी है। कोर्ट ने यह भी चिंता जताई कि याचिकाकर्ता के साथ दुर्व्यवहार किया गया और पुलिस अधिकारी द्वारा वकीलों और पूर्व जजों पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियां निंदनीय हैं।
न्याय की उम्मीद अब भी ज़िंदा
यह फैसला न केवल कानून के शासन की पुष्टि करता है, बल्कि उन आम नागरिकों के लिए भी राहत है, जो अक्सर बिना जानकारी के ट्रैफिक पुलिस की मनमानी का शिकार होते हैं। कोर्ट का यह रुख दिखाता है कि नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका सजग और सक्रिय है।
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कलकत्ता हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल ट्रैफिक नियमों की व्याख्या करता है, बल्कि पुलिस और आम जनता के बीच संतुलन बनाने की दिशा में भी एक आवश्यक कदम है। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून के सामने सभी समान हैं — चाहे वह आम नागरिक हो या कानून लागू करने वाली एजेंसियां
यदि आप भी ट्रैफिक नियमों के नाम पर हुए किसी अन्याय का सामना कर रहे हैं, तो इस फैसले को जानना और समझना आपके अधिकारों की रक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है।