छात्र आत्महत्याओं पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी:- आपको बतादे देशभर में शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते आत्महत्या के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गहरी चिंता जताई। और साथ ही अदालत ने कहा कि छात्रों की लगातार हो रही मौतें न सिर्फ एक सामाजिक संकट को दर्शाती हैं, बल्कि एक व्यवस्थागत विफलता की ओर भी इशारा करती हैं। शीर्ष अदालत ने इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा उचित कानून बनाए जाने तक 15 अनिवार्य दिशानिर्देश लागू करने का आदेश दिया है। बने रहिये हमारे साथ आगे की खबर जाने के लिए

मानसिक स्वास्थ्य पर उठाया गंभीर सवाल
आपको बतादे न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि छात्रों में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। वर्ष 2022 में देश में 1,70,924 आत्महत्याएं दर्ज हुईं, जिनमें से करीब 13,044 छात्र थे। इसमें से 2,248 ने परीक्षा में असफलता के कारण अपनी जान गंवाई।
पीठ का कहना था कि यह रुझान छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर मंडरा रहे गहरे संकट को दर्शाता है, जिसकी अनदेखी अब संभव नहीं। उन्होंने विशेष रूप से कोटा, जयपुर, विशाखापत्तनम, दिल्ली, सीकर और हैदराबाद जैसे शहरों की ओर इशारा किया, जहां देशभर से छात्र उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं।
कोचिंग और कॉलेजों के लिए नए दिशानिर्देश
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जब तक सरकार इस दिशा में कोई ठोस क़ानून या नियामक व्यवस्था नहीं बनाती, तब तक सभी शैक्षणिक संस्थानों — चाहे वह स्कूल, कॉलेज या कोचिंग सेंटर हों लेकिन इन 15 दिशानिर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से करना होगा। इसके लिए केंद्र और राज्यों को 90 दिनों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी।
विशाखापत्तनम मामले से जुड़ी सुनवाई
यह निर्देश उस याचिका के संबंध में दिए गए जिसमें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में एक 17 वर्षीय NEET छात्रा की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु की CBI जांच की मांग की गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ दिशा-निर्देश दिए बल्कि इस मामले की जांच अब CBI को सौंप दी है।
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संविधान और छात्रों का अधिकार
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक के जीवन और गरिमा के अधिकार का हिस्सा है। कोर्ट ने माना कि वर्तमान परिस्थिति में मानसिक तनाव, पढ़ाई का दबाव, सामाजिक कलंक और संस्थागत उदासीनता जैसे कारण आत्महत्याओं को बढ़ावा दे रहे हैं, जिन्हें रोका जा सकता है।