बिहार चुनाव 2025:- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची की विशेष समीक्षा को लेकर छिड़े राजनीतिक विवाद के बीच चुनाव आयोग ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि मतदाता सूची एक गतिशील दस्तावेज है, जिसकी समय-समय पर समीक्षा आवश्यक होती है। आयोग के अनुसार, इस प्रक्रिया का उद्देश्य किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि सूची को अद्यतन और सटीक बनाना है।

60% मतदाताओं को नहीं देने होंगे अतिरिक्त दस्तावेज
चुनाव आयोग ने जानकारी दी है कि राज्य में लगभग 60 प्रतिशत मतदाताओं को कोई अतिरिक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। आयोग ने वर्ष 2003 की मतदाता सूची को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया है, जिससे मतदाता अपना नाम सत्यापित कर सकते हैं। यदि उनका नाम इस सूची में मौजूद है, तो वे सीधा नया एनुमरेशन फॉर्म भर सकते हैं।
मतदाता सूची की समीक्षा क्यों जरूरी?
आयोग का कहना है कि मतदाता सूची को अद्यतन रखना एक स्वाभाविक और नियमित प्रक्रिया है, क्योंकि समय के साथ लोगों की मृत्यु होती है, वे स्थानांतरित होते हैं या नए युवा वोटर 18 वर्ष की आयु पूरी करके पात्र हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि सूची से अपात्र नाम हटाए जाएं और नए योग्य नागरिकों को जोड़ा जाए।
विपक्ष के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
विशेष गहन समीक्षा को लेकर विपक्षी दलों ने आशंका जताई थी कि इसके माध्यम से जानबूझकर कुछ वोटरों को सूची से बाहर किया जा सकता है। इस पर चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची की जांच और संशोधन प्रक्रिया पूरी तरह से नियमबद्ध, पारदर्शी और कानूनी दायरे में की जाती है। आयोग ने दोहराया कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल सूची को निष्पक्ष और अद्यतन बनाए रखना है।
यह भी पड़े:- तेलंगाना की फार्मा फैक्ट्री में भीषण विस्फोट: 12 की
पारिवारिक आधार पर भी किया जा सकेगा आवेदन
यदि कोई व्यक्ति वर्ष 2003 की सूची में दर्ज नहीं है, लेकिन उसके माता या पिता का नाम उसमें मौजूद है, तो वह व्यक्ति अपने आवेदन में माता-पिता के नाम और उनसे संबंधित सूची का अंश प्रस्तुत कर सकता है। ऐसे मामलों में माता-पिता को कोई अलग दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं होगी, केवल आवेदक को स्वयं के पहचान दस्तावेज जमा करने होंगे।
कानूनी प्रावधानों के तहत हो रही समीक्षा
चुनाव आयोग ने बताया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत किया जाता है। आयोग पिछले कई दशकों से हर वर्ष नियमित रूप से इस प्रक्रिया का पालन करता आ रहा है। इसमें संक्षिप्त एवं गहन दोनों प्रकार की समीक्षा शामिल होती है, जो पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिए आवश्यक है।