Telangana Forest Cutting: तेलंगाना के हैदराबाद स्थित कांचा गाचीबोवली में सैकड़ों पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करी गई, इस मुद्दे पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – “इतनी भी क्या जल्दी थी?”

जैसे ही यह मामल सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, वहीँ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने तेलंगाना सरकार की खिंचाई करते हुए सीधे शब्दों में कहा – “अगर पेड़ निजी जंगल में भी हैं, तो भी उन्हें काटने के लिए कोर्ट की इजाज़त ज़रूरी है। कानून किसी की बपौती नहीं है!”
पेड़ों के बीच भगदड़, जानवरों की चीख – और कोर्ट में गूंजता सवाल!
इस सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश किया गया एक वीडियो ने कोर्ट को भी झकझोर गया। कोर्ट में दिखाए गए वीडियो में साफ़ दिख रहा था कि जानवर डरकर इधर-उधर भाग रहे हैं, शाकाहारी जानवर आश्रय ढूंढते भटक रहे हैं, और आवारा कुत्तों के हमले झेल रहे हैं।
जस्टिस गवई ने कहा –
“हम अफसरों या मंत्रियों की व्याख्या पर नहीं चलेंगे। हम जानवरों की चीखें सुन रहे हैं और ये हमें चुप नहीं बैठने देंगी।”
कोर्ट का सख्त आदेश – विकास कार्य तुरंत रोको!
3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने हेदराबाद के गाचीबोवली क्षेत्र में सभी प्रकार के विकास कार्यों पर तुरंत रोक लगा दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा –

“जब तक अगला आदेश न आए, तब तक एक भी पेड़ को हाथ नहीं लगाया जाएगा। सिर्फ़ पहले से मौजूद पेड़ों की सुरक्षा की जाएगी।”
इतना ही नहीं, कोर्ट ने मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराते हुए एक विस्तृत हलफनामा भी मांगा है।
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“छुट्टियों में बुलडोज़र लाए क्यों गए?” – कोर्ट का तीखा सवाल
जस्टिस गवई ने सरकार की इस जल्दबाज़ी पर गहरी नाराज़गी जताते हुए पूछा –
“इतने सारे बुलडोज़र एक साथ छुट्टियों में क्यों भेजे गए? क्या आपको अंदाज़ा है कि आपने कितने पेड़ों की बलि दी है? हमें स्पष्टीकरण नहीं चाहिए, हमें समाधान चाहिए।”
“हमारा उद्देश्य साफ़ है – पर्यावरण की रक्षा”
जस्टिस गवई ने कोर्ट की मंशा को साफ करते हुए कहा –
“हमें किसी पदाधिकारी की चिंता नहीं, हमें सिर्फ़ पर्यावरण की चिंता है। अगर जंगल नहीं बचे, तो शहर भी सांस नहीं ले पाएंगे। हम पहले भी सुकना झील में बड़े प्रोजेक्ट को रोक चुके हैं।”

अब क्या करें सरकार?
कोर्ट ने सरकार से पूछा है –
- आपने बिना अनुमति के कितने पेड़ काटे?
- जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए आपने क्या कदम उठाए?
- 100 एकड़ भूमि को आप कैसे बहाल करेंगे?
“अगर समाधान नहीं दिया गया, तो अधिकारियों को जेल भी भेजा जा सकता है।”
संवेदनशीलता की ज़रूरत है, सिर्फ़ विकास की नहीं
यह मामला सिर्फ़ पेड़ों की कटाई का नहीं है, यह संवेदनशीलता बनाम जल्दबाज़ी का है। यह याद दिलाता है कि विकास की राह जंगल से होकर नहीं, बल्कि उसके साथ चलकर तय होनी चाहिए।
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