सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख:- एक बड़ी ख़बर के सामने आ रही है आपको बतादे सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिसकर्मियों को वर्दी पहनते ही अपनी निजी, धार्मिक और जातिगत सोच को पूरी तरह त्याग देना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी अकोला में 2023 के दौरान भड़की साम्प्रदायिक हिंसा और हत्या के मामले में जांच में लापरवाही को लेकर की।

पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य निष्पक्ष जांच करना है, लेकिन अकोला हिंसा मामले में अधिकारियों ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की, जो उनके कर्तव्य में गंभीर चूक है। अदालत ने कहा कि पुलिस ने न केवल गवाह का बयान दर्ज करने में टालमटोल की, बल्कि जांच को भी सही दिशा नहीं दी।

क्या है पूरा मामला

मई 2023 में अकोला के ओल्ड सिटी इलाके में पैगंबर मोहम्मद से जुड़े एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद साम्प्रदायिक तनाव फैल गया था। हिंसा के दौरान विलास महादेव राव गायकवाड़ की हत्या कर दी गई, जबकि कई लोग घायल हुए। घायलों में मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ भी शामिल थे, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने घटना को अपनी आंखों से देखा। शरीफ ने चार हमलावरों पर तलवार और लोहे की पाइप से हमला करने का आरोप लगाया। हालांकि, उनके बयान के बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।

हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका

घायल शरीफ के पिता ने पुलिस की निष्क्रियता के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। वहीं, महाराष्ट्र पुलिस ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता का गवाह होने का दावा संदिग्ध है और उस समय वह बयान देने की स्थिति में नहीं था।

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के गृह विभाग को निर्देश दिया कि वह तुरंत विशेष जांच दल (SIT) का गठन करे। इस एसआईटी में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे, ताकि जांच निष्पक्ष हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी लापरवाह पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए और पुलिस बल को संवेदनशीलता एवं कानून के प्रति जागरूकता की ट्रेनिंग दी जाए।

एसआईटी को तीन महीने के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपनी होगी।