ट्रेन हाइजैक: पाकिस्तान एक बार फिर से हिंसा और आतंकवाद चपेट में आ गया है। इस बार मामला बलूचिस्तान के बीहड़ों का है, जहां कुछ बलूचिस्तान उग्रवादियों ने जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाइजैक कर लिया। इस हाइजैक में बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों और 400 से अधिक यात्रियों को बंधक बना लिया गया है। पाकिस्तान की यह स्थिति बताती है कि वह किस हद तक आतंकवाद से जूझ रहा है।

पाकिस्तान के हालात आज भी वही है, जो कुछ साल पहले थे—पाकिस्तान में हिंसा का सिलसिला आज भी वहीँ का वहीँ है। हिंसा की एक और बड़ी घटना ने पाकिस्तान की कमजोरियों को उजागर कर दिया और पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर खींच लिया है। बलूचिस्तान में जो कुछ हुआ, वह पाकिस्तानी सेना के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, लेकिन क्या यह सब पाकिस्तान के खुद के बनाए आतंकवादियों की देन नहीं है?
आज पाकिस्तान उस स्थिति में है, जहां वह यह तय करने में असमर्थ है कि आखिर वह किसे आतंकवादी माने और किसे नहीं। पाकिस्तान ने खुद आतंकवाद को ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ में बांटा था, और यही नीति उसे भारी पड़ रही है। आतंकवाद पर काबू पाने के लिए पाकिस्तान ने 2014 में ‘जर्ब-ए-अज्ब’ ऑपरेशन शुरू किया था, जो उस समय काफी सुर्खियों में था।
ऑपरेशन ‘जर्ब-ए-अज्ब’ और उसकी हक्कीकत
‘जर्ब-ए-अज्ब’ का शाब्दिक अर्थ है “तेज और काटने वाला प्रहार।” यह ऑपरेशन पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में सशस्त्र विद्रोहियों के खिलाफ शुरू किया गया था। पाकिस्तान ने दावा किया था कि इस ऑपरेशन के ज़रिये अल-कायदा, तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ निर्णायक प्रहार किया जाएगा। यह ऑपरेशन पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
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जब पाकिस्तानी सेना यह ऑपरेशन चला रही थी, तब किसी भी स्वतंत्र पत्रकार को इसे कवर करने की इजाज़त नहीं दी गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दो साल में पाकिस्तानी सेना ने 3500 आतंकवादियों को मारने का दावा किया, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी।
‘अच्छा’ आतंकवादी और ‘बुरा’ आतंकवादी
‘जर्ब-ए-अज्ब’ ऑपरेशन की सबसे बड़ी कमजोरी यह साबित हुई कि पाकिस्तानी सेना का आतंकवाद पर दृष्टिकोण एक विरोधाभास से भरा हुआ था। पाकिस्तान की सेना ने उन आतंकवादियों को बुरा माना, जो पाकिस्तान में हमले करते थे, लेकिन पाकिस्तान ने उन आतंकवादियों को ‘अच्छा’ मानता था, जो भारत या अफगानिस्तान में हमले करते थे।
इस ऑपरेशन में कोई भी बड़ा आतंकवादी समूह, जैसे कि हक्कानी नेटवर्क या अफगान तालिबान, निशाने पर नहीं आया। वहीं, भारत के खिलाफ सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा और अन्य समूहों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए बेहद खतरनाक साबित हुई।
2016 में, जब अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी भारत आए, तो उन्होंने पाकिस्तान से यह अपील की कि वह अपने देश में आतंकवाद के समर्थन को बंद करे और बुरे आतंकवादियों को ख़त्म करने के लिए और भी सख्ती से कदम उठाए। उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान को न केवल अपनी सुरक्षा के लिए, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी इस पर ध्यान देना होगा।
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जनता पर असर
‘जर्ब-ए-अज्ब’ ऑपरेशन की सबसे बड़ी कीमत पाकिस्तान की आम जनता ने चुकाई। ऑपरेशन की वजह से उत्तरी वजीरिस्तान में लाखों लोग अपनी जान बचाने के लिए अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए। एक साल के भीतर कम से कम 10 लाख लोग विस्थापित हुए, और उनके लिए यह मानवीय संकट बेहद दर्दनाक था।
क्या पाकिस्तान आतंकवाद से मुक्त हो पाएगा?
आज भी पाकिस्तान में जो हो रहा है, वह ‘जर्ब-ए-अज्ब’ ऑपरेशन की असफलता कारण माना जाता है। पाकिस्तान अब आतंकवाद से निपटने के लिए कोई अलग रास्ता निकाल रहा है,
अब यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव करेगा और इस हिंसक चक्र को तोड़ पाएगा? या फिर वह अपनी पुरानी गलतियों से उबरने में सक्षम नहीं होगा?
पाकिस्तान के सामने आज वही चुनौती है, जो उसे खुद ही अपनी नीतियों के कारण दी गई है। “जर्ब-ए-अज्ब” जैसे ऑपरेशन इस तथ्य को नहीं बदल सकते कि पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक स्थायी और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।