न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने की प्रक्रिया:- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर यादव को कथित ‘घृणास्पद भाषण’ के कारण पद से हटाने को लेकर संसद में पेश किए गए प्रस्ताव पर एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। राज्यसभा सचिवालय ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले 55 सांसदों में से अब तक 44 सांसदों के हस्ताक्षरों का सत्यापन कर लिया है। यह प्रस्ताव 13 दिसंबर 2024 को प्रस्तुत किया गया था।

कपिल सिब्बल ने उठाए गंभीर सवाल
वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल, जिन्होंने इस प्रस्ताव की शुरुआत की थी, ने प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सचिवालय ने दावा किया है कि उन्हें उनके आधिकारिक ईमेल पर तीन बार नोटिस भेजा गया, लेकिन उन्हें ऐसा कोई मेल नहीं मिला। सिब्बल ने यह भी कहा कि उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ से कई बार मुलाकात की, लेकिन हस्ताक्षर सत्यापन पर कभी कोई चर्चा नहीं हुई। उन्होंने पूछा, “अगर मैं इस प्रस्ताव का प्रस्तुतकर्ता हूं तो मेरे हस्ताक्षर की पुष्टि पर इतना भ्रम क्यों?”
एक सांसद के दो हस्ताक्षरों से बढ़ा विवाद
इस प्रस्ताव में शामिल झामुमो सांसद सरफराज अहमद के हस्ताक्षर दो बार दर्ज पाए गए हैं, जिससे विवाद खड़ा हो गया है। सरफराज ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने केवल एक बार हस्ताक्षर किए थे और इस बारे में सभापति से मिल चुके हैं। अब सचिवालय इस बात की जांच कर रहा है कि हस्ताक्षर दो बार कैसे दर्ज हुए — क्या यह किसी तकनीकी गड़बड़ी का मामला है या जानबूझकर की गई कोई छेड़छाड़?
प्रस्ताव की तकनीकी खामियां भी आईं सामने
सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव बिना तारीख और स्पष्ट रूप से किसी को संबोधित किए प्रस्तुत किया गया था। ऐसे में इसकी वैधता पर भी सवाल उठने लगे हैं। सिब्बल ने यह भी पूछा है कि यदि छह महीने बाद सत्यापन की प्रक्रिया शुरू की गई है, तो इसे जानबूझकर टाला गया या यह प्रशासनिक लापरवाही का मामला है।
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न्यायाधीश को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया
भारतीय संविधान के अनुसार, किसी उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीश को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया अत्यंत कठोर और सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत होती है। राज्यसभा में ऐसा प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं, जबकि लोकसभा के लिए यह संख्या 100 होती है। इसके बाद दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना चाहिए, और अंततः राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है।
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निष्कर्ष
न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने की प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक और विधिक दोनों ही स्तरों पर तीखी बहस छिड़ चुकी है। जहां एक ओर हस्ताक्षर की वैधता और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तकनीकी खामियों ने इस पूरे मामले को और जटिल बना दिया है। अब यह देखना अहम होगा कि यह प्रस्ताव आगे कैसे बढ़ता है — क्या यह संवैधानिक प्रक्रिया के तहत निर्णायक मोड़ तक पहुंच पाएगा, या फिर सवालों और विवादों में उलझकर रह जाएगा।